Thursday, March 28, 2024
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    21 क्विंटल मक्खन से हुआ मां श्री बज्रेश्वरी देवी का शृंगार, श्रद्धालु खाएंगे नहीं, शरीर पर लगाएंगे लेप | ActionPunjab


    ब्यूरो: विश्व प्रसिद्ध शक्ति पीठ माता श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा में मकर संक्रांति पर 21 क्विंटल मक्खन और फलों व मेवों से माता की पिंडी का शृंगार किया गया। रविवार सायं छह बजे से पिंडी पर मक्खन चढ़ाने का कार्य शुरू हो गया था और देर रात तक जारी रहा। देसी घी से मक्खन बनाने में मंदिर के लगभग 11 बारीदार पुजारी जुटे थे। पुजारियों ने करीब 21 क्विंटल मक्खन तैयार किया, जिसे माता की पिंडी पर चढ़ाया गया।

    माता बज्रेश्वरी देवी का मंदिर अकेला ऐसा है जहां माघ माह में होने वाले पर्व के बाद मिलने वाले मक्खनरूपी प्रसाद को आप खा नहीं सकते है। मान्यता है कि चर्म रोगों और जोड़ो के दर्द में लेप लगाने के लिए यह प्रसाद रामबाण सिद्ध होता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्र्वरी के इतिहास से संबंधित है। कहते है कि जालंधर दैत्य को मारते समय माता बज्रेश्वरी के शरीर पर कई चोटें लगी थी और घावों को भरने के लिए देवताओं ने मां के शरीर पर घृत मक्खन का लेप किया था। इसी परंपरा के अनुसार देसी घी को 101 बार शीतल जल से धोकर इसका मक्खन तैयार कर इसे माता की पिंडी पर चढ़ाया जाता है। सातवें दिन पिंडी के घृत को उतारने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसके बाद घृत प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओ में बांटा जाता है। मकर संक्रांति पर घृत मडल पर्व को लेकर यह श्रद्धालुओं की ही आस्था है कि हर बार मां की पिडी पर घृत की ऊंचाई बढ़ती जा रही है।

    माता श्री बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ का अपने आप में अनूठा और विशेष है, क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते, बल्कि मुस्लिम और सिक्ख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। बृजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिक्ख संप्रदाय का प्रतीक है।

    माता श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा के मुख्य पुजारी पंडित राम प्रसाद शर्मा के अनुसार यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्र्वरी के इतिहास से संबंधित है। उन्होंने कहा जालंधर दैत्य को मारते समय माता बज्रेश्वरी के शरीर पर कई चोटें लगी थी और घावों को भरने के लिए देवताओं ने मां के शरीर पर घृत मक्खन का लेप किया था। इसी परंपरा के अनुसार देसी घी को 101 बार शीतल जल से धोकर इसका मक्खन तैयार कर इसे माता की पिंडी पर चढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा सातवें दिन पिंडी के घृत को उतारने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसके बाद घृत प्रसाद के रूप में श्रद्धालुाओं में बांटा जाता है। 


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    Author: actionpunjab

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