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हरियाणा सरकार ने राइस मिलर्स को बड़ा झटका दिया है। सरकार ने नई कस्टम मिल्ड राइस पॉलिसी (CMR) जारी कर दी है। हालांकि इस पॉलिसी का राइस मिलर्स विरोध कर रहे हैं। इसकी वजह है कि नई पॉलिसी में बड़ा बदलाव करते हुए डिलीवरी में टूटे चावल की स्वीकार्य सीमा को घटा दिया गया है, जो पहले यह 25% था, अब यह घटाकर सिर्फ 10% कर दिया गया है। मिल मालिकों का तर्क है कि इस कदम से उनका बोझ बढ़ जाएगा, क्योंकि मिलिंग के दौरान टूटना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। नई पॉलिसी में पैकजिंग शुल्क तय किया नई नीति में, सरकार ने टूटे चावल को कम करने के लिए अतिरिक्त मिलिंग लागत के लिए 2.23 रुपए प्रति क्विंटल, अतिरिक्त भंडारण लागत के लिए 1.23 रुपए प्रति क्विंटल और टूटे चावल की पैकेजिंग शुल्क के लिए 3.33 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। इन दरों के मुकाबले, टूटे चावल की प्रसंस्करण और हैंडलिंग लागत लगभग 25 रुपए प्रति क्विंटल है। मिल मालिकों ने बचे 15% टूटे चावल पर भी स्पष्टता की मांग की है। राइस मिलर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सौरभ गुप्ता ने कहा, कि हम शेष 15% टूटे चावल पर स्पष्टता की मांग करते हैं क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में सीएमआर लागू करना मुश्किल है। फेजवाइज करनी होगी चावल की डिलीवरी नई एमएनआर पॉलिसी के तहत मिल मालिकों को चरणबद्ध तरीके से चावल की आपूर्ति करनी होगी। दिसंबर 2025 तक 15%, जनवरी 2026 तक 25%, फरवरी के अंत तक 20%, मार्च के अंत तक 15%, मई के अंत तक 15% और 30 जून तक अंतिम 10%। केंद्र ने सामान्य धान के लिए एमएसपी 2,369 रुपए प्रति क्विंटल और ग्रेड ‘ए’ के लिए 2,389 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। धान ले जाने के लिए नहीं मिलेगा ट्रांसपोर्ट मिल मालिकों ने अनाज मंडियों से एफसीआई गोदामों तक धान ले जाने के लिए परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने से सरकार के इनकार पर भी निराशा व्यक्त की। मिलर्स ने आरोप लगाया, हमें और किसानों को सीजन के दौरान मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि ट्रांसपोर्टरों को पर्याप्त संख्या में वाहन उपलब्ध कराए बिना ही टेंडर मिल जाते हैं। कुछ ट्रांसपोर्टरों द्वारा प्रशासन को फर्जी वाहन नंबर दिए जाते हैं, जिसका पहले भी खुलासा हो चुका है। इस साल 13.97 लाख एकड़ में बुवाई कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुमान के अनुसार, इस वर्ष लगभग 13.97 लाख एकड़ में धान की बुवाई होगी और मंडियों और खरीद केंद्रों में लगभग 84 लाख मीट्रिक टन धान की आवक होगी। इसमें से, खरीद एजेंसियों द्वारा लगभग 54 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद और लगभग 36 लाख मीट्रिक टन सीएमआर (वितरित चावल का लगभग 67 प्रतिशत) केंद्रीय पूल में योगदान देने की उम्मीद है।


