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यूपी में सहारनपुर के रहने वाले पंजाब के पूर्व DGP मोहम्मद मुस्तफा के बेटे अकील की 16 अक्टूबर की देर रात पंचकुला में मौत हो गई। तब परिवार ने कहा था- दवाओं के ओवरडोज से मौत हुई। मौत के दो दिन बाद बेटे का वीडियो सामने आया, जिसमें उसने कहा कि मेरी पत्नी मेरी नहीं है, मेरे डैडी की है। अब पूर्व DGP मोहम्मद मुस्तफा का कहना है कि मेरे बेटे अकील को करीब 18 साल से साइकोटिक डिसऑर्डर था। वो नशा भी करता था। 2007 में उसकी तबीयत बिगड़नी शुरू हो गई थी। ऐसे में सवाल ये की क्या होता है साइकोटिक डिसऑर्डर? इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति को कौन-कौन सी हो सकती है बीमारी ? इसके लक्षण क्या हैं? कितनी खतरनाक होती है बीमारी? क्या कहती है स्टडी ? पढ़िए भास्कर एक्सप्लेनर में सारे सवालों के जवाब… पहले पढ़िए ये मामला साल 2024 में हाथरस में 14 साल के लड़के ने एक 11 साल के लड़के की हत्या कर दी थी। पुलिस ने अपनी जांच-पड़ताल में इस मामले का खुलासा किया। इस केस को लेकर मनोरोग विशेषज्ञों ने बताया कि अक्सर ऐसे लोग सिजोफ्रेनिया से पीड़ित होते हैं। इस केस में पुलिस ने खुलासा किया की बच्चा स्कूल के हॉस्टल में रहता था। वह स्कूल से घर जाना चाहता था, उसने कभी पहले मोबाइल पर देखा था कि किसी छात्र की मौत हो जाने पर स्कूल बंद हो जाता है तो उसने भी घर जाने के लिए यही तरीका अपनाया। सोते समय कृतार्थ की अंगोछे से गला दबाकर हत्या कर दी। किसको साइकोटिक और न्यूरोसिस कहते हैं? वाराणसी में BHU के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ संजय गुप्ता बताते है- जब किसी व्यक्ति की जजमेंट (निर्णय लेने की क्षमता) और इनसाइट (अपने मानसिक स्थिति को समझने की क्षमता) प्रभावित हो जाती है, तो इसे साइकोटिक कहा जाता है। जब व्यक्ति की जजमेंट और इनसाइट सामान्य रूप से ठीक रहती है, तो इसे न्यूरोसिस कहा जाता है। इसमें व्यक्ति अपने मानसिक तनाव या चिंता को पहचान सकता है। हालांकि परेशानी या चिंता होती है, लेकिन वास्तविकता की समझ बनी रहती है। क्या होती है साइकोटिक डिसऑर्डर बीमारी? गोरखपुर जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. अमित शाही बताते है- साइकोटिक डिसऑर्डर एक बीमारी है। इसमें मरीज वास्तविकता से कट जाते हैं और काल्पनिक दुनिया में जीते है। उन्हें भ्रम या भ्रमित ध्वनियां/चित्र दिख/सुनाई दे सकते हैं। अमित शाही के अनुसार, इस डिसऑर्डर के अंदर करीबन 20 तरह की बीमारियां डाइग्नोसिस होती है। उनमें से एक सिजोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर भी होता है। जैसे 2018 का बुराड़ी हत्याकांड, इसमें भी परिवार को ‘शेयर्ड साइकोसिस डिसऑर्डर’ था। इस केस में परिवार के लोग सोचते हैं कि उस व्यक्ति में खास शक्तियां हैं। ऐसे लोग परिवार के दूसरे सदस्यों पर भी प्रभाव डालते हैं। फिर वो भी कुछ-कुछ ऐसा ही अनुभव करने लगते हैं और खुद को सच्चाई से दूर ले जाते हैं। हालांकि डॉक्टर बताते है कि इस केस में डाइग्नोसिस नहीं हुआ है कि क्या बीमारी है। लेकिन इसके लक्षणों को देखकर कहा जा सकता है कि सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हो सकता है। सिजोफ्रेनिया क्या है? गोरखपुर जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ अमित शाही बताते है- सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इस बीमारी में मरीज अक्सर वास्तविक दुनिया से कट जाते हैं और अपनी ही दुनिया में रहने लगते हैं। हर मरीज के लक्षण अलग होते हैं, जैसे कानों में आवाज आना, अकारण संदेह करना, अपने में बात करना, बिना बात के हंसना, रोना आदि। कुछ लोग काल्पनिक दुनिया में रहते हैं और उनके विचार वास्तविकता से अलग होते हैं। इस वजह से उनकी भावनाएं, व्यवहार और रोजमर्रा की क्षमता प्रभावित होती है। वे अपने दिल की बात सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते और जीवन में रुचि कम हो जाती है। कभी-कभी वे छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत अधिक भावुक या परेशान हो जाते हैं। मानव मस्तिष्क में डोपामाइन नाम का न्यूरो ट्रांसमीटर होता है, जो दिमाग और शरीर में बीच तालमेल बिठाता है। कई बार डोपामाइन केमिकल किन्हीं वजहों से जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है, तब सिजोफ्रेनिया की समस्या उत्पन्न होती है। सिजोफ्रेनिया से कैसे करें? बचाव बीएचयू के डॉ. संजय गुप्ता बताते हैं- सिजोफ्रेनिया का इलाज अब उपलब्ध है। इसके लिए जरूरी है कि मरीज का अच्छे से ख्याल रखा जाए। घर परिवार के लोगों के बीच में रहे। मरीज को समय-समय पर मनोरोग विशेषज्ञ जरूर मिलाएं। इलाज में कोई गैप न करें। ये लंबे वक्त तक चलने वाली बीमारी है। सिजोफ्रेनिया में रिकवरी 50 प्रतिशत से ऊपर नहीं हो पाती है, लेकिन इलाज लंबे वक्त चलाया जाए तो 90 प्रतिशत तक रिकवरी हो जाती है। भारत में पहली बार सिजोफ्रेनिया की सर्जरी साल 2023 में गुरुग्राम के मरेन्गो एशिया अस्पताल में एक 28 वर्षीय अफ्रीकी मरीज पर DBS तकनीक का उपयोग करके सिजोफ्रेनिया का इलाज किया गया। व्यक्ति 13 साल की उम्र से इस बीमारी से पीड़ित था। यह भारत में इस प्रकार की पहली सर्जरी थी और वैश्विक स्तर पर भी इस प्रक्रिया को केवल 13 बार ही किया गया है। डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (DBS) क्या है? डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (DBS) एक नई सर्जिकल तकनीक है, जिसमें मस्तिष्क के खास हिस्सों में छोटे इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं। ये इलेक्ट्रोड ब्रेन की असामान्य गतिविधियों को नियंत्रित करने और संतुलन बहाल करने के लिए हल्की बिजली भेजते हैं। इस ऑपरेशन में लगभग 8-10 घंटे लगते हैं। इसके बाद मरीज को रातभर आईसीयू में रखा जाता है। ऑपरेशन के अगले ही दिन से मरीज चलने-फिरने में सक्षम हो जाता है और उसके लक्षणों में करीब 50-60% तक सुधार दिखाई देता है। सिजोफ्रेनिया पुरुषों को महिलाओं से जल्दी अनुभव विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 2.4 करोड़ (24 मिलियन लोग) या 300 में से 1 व्यक्ति (0.32%) पीड़ित हैं। वयस्कों में यह दर 222 में से 1 हैं, या 0.45 फीसदी हैं। कई अन्य मानसिक विकारों की तुलना में यह कम प्रचलित है। इसकी शुरुआत किशोरावस्था से लेकर 20 साल की उम्र में होती है। पुरुषों को अक्सर महिलाओं की तुलना में जल्दी शुरुआत का अनुभव होता है। सिंगापुर में 116 में से 1 व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है। भारत में मेंटल हेल्थ से कितने लोग प्रभावित हैं? राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16 में भारत के 12 राज्यों में लगभग 34,802 वयस्कों पर अध्ययन किया गया। सर्वेक्षण में सिजोफ्रेनिया और उससे जुड़े मानसिक विकारों का जीवनभर में अनुभव 1.41 प्रतिशत और वर्तमान में 0.42 प्रतिशत पाया गया। हालांकि, सबसे चिंता की बात यह है कि वर्तमान मरीजों में 72% तक लोग पर्याप्त इलाज से वंचित हैं। खासकर शहरी इलाकों के बाहर यह आंकड़ा बढ़कर 83% हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाने, इलाज और पहुंच सुधारने की तत्काल आवश्यकता है। सर्वेक्षण यह भी बताता है कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे केवल व्यक्तिगत नहीं हैं, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी असर डालते हैं। भारत में उपलब्ध आंकड़े बताते हैं- वयस्क आबादी में करीब 20 फीसदी लोग मेंटल हेल्थ की किसी न किसी समस्या से परेशान हैं। WHO की स्टडी में अनुमान है कि भारत में मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं का बोझ प्रति एक लाख जनसंख्या पर 2443 डिसएबिलिटी एडजस्टेड लाइफ ईयर है। प्रति एक लाख जनसंख्या पर एज एडजस्टेड सुसाइड रेट 21.1 है। मेंटल हेल्थ के कारण 2012 से 2030 के बीच 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक नुकसान का अनुमान व्यक्त किया गया है। ये भी अनुमान है कि कुल आबादी में 6-7 प्रतिशत लोग मेंटल डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। ………….. ये खबर भी पढ़ें… गोरखपुर के पुरुष सबसे ज्यादा घरेलू काम करते हैं:लखनऊ वाले सबसे पीछे; पत्नी के पीरियड के समय भी हाथ नहीं बंटाते पुरुष घर में कितना हाथ बंटाते हैं? इस पर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। एक पुरुष औसत 11 मिनट घरेलू काम करता है। इस सर्वे में यूपी के 3 शहर हैं, जहां के पुरुष घर का काम ज्यादा करते हैं। यह रिपोर्ट सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के यूपी और देश के दूसरे राज्यों में साढ़े 5 साल तक किए गए सर्वे में आई। एनजीओ ने यह सर्वे ‘गृह साथी कार्य’ नाम से किया है। सर्वे में कुल 13,400 पुरुष-महिलाओं ने हिस्सा लिया। पढ़िए यूपी के वो किन शहरों के पुरुष हैं, जाे सबसे ज्यादा घरेलू काम करते हैं? सबसे कम कहां के पुरुष करते हैं? जब पत्नी को जरूरत होती है, तब कितना किचन में काम करते हैं? पढ़िए पूरी खबर…


